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शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
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ग़ज़ल
सुर्ख़-रू नज़रों में होने का बहाना चाहूँ
जो मिरे पास है सब तुझ पे गँवाना चाहूँ