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शेर
ये मो'जिज़ा है मोहब्बत में सुर्ख़-रूई का
भरे जहान में मुझ बे-हुनर के चर्चे हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
समझ में लाल की अब तक हिना नहीं आई
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
समस्त
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नज़्म
पासबान-ए-हरम-ए-गुल की तरह
बेनाम-ओ-निशाँ सा
सुर्ख़-रूई की ख़्वाहिश-ए-सियाह के बग़ैर
अबुल फैज़ सहर
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ात हवाला है सुर्ख़-रूई का
तुम्हारे ज़िक्र को सब शर्त-ए-फ़न बनाते हैं