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ग़ज़ल
शिद्दत-ए-ज़ब्त की लज़्ज़त को घटा देती हैं
आँखें नादान हैं क्यों अश्क बहा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
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ग़ज़ल
धूप की निय्यतों में भड़कने लगे नफ़रतों के अलाव
ऐ घटा इस लिए तुझ को मेरा बदन ओढ़ना चाहता है
रफ़ीक़ ख़याल
ग़ज़ल
अब की बारिश में न रह जाए किसी के दिल में मैल
सब की गगरी धो के भर दे ऐ घटा बरसात की
नज़ीर बनारसी
ग़ज़ल
हवा-ए-फ़स्ल-ए-गुल आई घटा घनघोर जब छाई
चला यूँ दौर-ए-पैमाना कि मयख़ाने मचल उट्ठे