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नज़्म
वालिद साहब की याद में
पल भर सुस्ता लेने को तरसा करती थी
ये तो सदियों का क़िस्सा था
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
तू यहाँ ज़ेर-ए-उफ़ुक़ चंद घड़ी सुस्ता ले
मैं ज़रा दिन से निमट कर शब-ए-तार! आता हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
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ग़ज़ल
हम तो कहते थे दम-ए-आख़िर ज़रा सुस्ता न जा
ले, चले हम जान से, मुख़्तार है अब जा न जा
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
थक गए होगे बहुत पुर-पेच थी चाहत की राह
आओ मेरी गोद में सर रख के सुस्ता लो ज़रा