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ग़ज़ल
अपनी नज़रों में नशात-ए-जल्वा-ए-ख़ूबाँ लिए
ख़ल्वती-ए-ख़ास सू-ए-बज़्म-ए-आम आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मैं शम्अ-ए-बज़्म-ए-आलम-ए-इम्काँ किया गया
इंसानियत को देख के इंसाँ किया गया
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
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क़ितआ
हम-नशीं उफ़ इख़्तिताम-ए-बज़्म-ए-मय-नोशी न पूछ
हो रहा था इस तरह महसूस होश आने के ब'अद
एहसान दानिश
नज़्म
रुख़्सत ऐ बज़्म-ए-जहाँ
رخصت اے بزم جہاں! سوئے وطن جاتا ہوں ميں
آہ! اس آباد ويرانے ميں گھبراتا ہوں ميں
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं
सोचो तो सिर्फ़ कुश्ता-ए-दौर-ए-जहाँ हूँ मैं
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
निगार-ख़ाना-ए-बज़्म-ए-जहाँ की बात करो
शराब-ओ-सब्ज़ा-ओ-आब-ए-रवाँ की बात करो
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
नक़ाब-ए-बज़्म-ए-तसव्वुर उठाई जाती है
शिकस्त-ख़ुर्दों की हिम्मत बढ़ाई जाती है