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ग़ज़ल
जो नंग-ए-चमन कहते हैं तारीख़ तो देखें
हम रूह-ए-चमन ज़ीनत-ए-गुलज़ार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
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ग़ज़ल
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
फ़ाज़िल था घर से मजनूँ लैला पढ़ी लिखी थी
मुज़्तर ख़ैराबादी
नज़्म
सब्ज़ा-ए-बेगाना
हसब-नसब है न तारीख़ ओ जा-ए-पैदाइश
कहाँ से आया था मज़हब न वलदियत मालूम
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
रिवायात-ए-कुहन में दिलकशी बाक़ी नहीं 'अख़्तर'
नए अंदाज़ से तारीख़-ए-शहर-ए-गुल-रुख़ाँ लिखिए
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
नज़्म
शुऊर
कि मैं हूँ वारिस-ए-तारीख़-ए-अस्र-ए-इंसानी
क़दम क़दम पे जहन्नम क़दम क़दम पे बहिश्त
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
बेबसी गीत बुनती रहती है
कौन तारीख़-ए-किश्त-ओ-ख़ूँ को पढ़े
बेबसी गीत बुनती रहती है