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ग़ज़ल
चमकते ख़्वाब मिलते हैं महकते प्यार मिलते हैं
तुम्हारे शहर में कितने हसीं आज़ार मिलते हैं
ख़ुर्शीद अहमद जामी
ग़ज़ल
जाएज़ है हर इक हर्बा इस वक़्त सियासत में
पत्थर का बयाँ ले लो शीशे की अदालत में
अब्दुल मतीन जामी
ग़ज़ल
जवाँ था दिल न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पहले
वो थे क्या मेहरबाँ सारा जहाँ था मेहरबाँ पहले