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हास्य
थैंक यू थैंक यू तू ने कराई मेरी ठुकाई चार बजे
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
ख़ुद अपना फ़ैसला भी इश्क़ में काफ़ी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
एक आरज़ू
रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम
उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो