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शेर
जो जान छिड़कते थे वही कहते हैं मुझ से
तू हल्क़ा-ए-अहबाब में शामिल ही कहाँ था
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
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नज़्म
मसरूफ़ियत
कल शब मेरे बाज़ू उस की ख़ुशबू में तर थे
साकित आँख के पर्दे पर तस्वीर उसी की थी
मुहम्मद राशिद अतहर
ग़ज़ल
शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे
घिसते घिसते घिस गए आख़िर कंकर जो नोकीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
हुई हम से ये नादानी तिरी महफ़िल में आ बैठे
ज़मीं की ख़ाक हो कर आसमाँ से दिल लगा बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
तुझ को ख़ुद अपने ही साए पे गुमाँ गुज़रा है
तेरा वहशी तिरे कूचे से कहाँ गुज़रा है