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नज़्म
हरीफ़-ए-विसाल
हर एक चेहरा ख़ुद अपनी आँखों में आईना हो गया हो जैसे
तिलिस्म-ए-सिम-सिम से जिस ख़ज़ाने का दर खुला था
हिमायत अली शाएर
नज़्म
आज और कल
आज अफ़्लास ने खाई है ज़रसीम से मात
इस में लेकिन तिरे चिल्लों का कोई दोश नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
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