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ग़ज़ल
सब्ज़ा-आग़ाज़ी सो ये कुछ तिसपे आफ़त सादगी
क़हर फिर उस बात पर गर्दन हिलानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
संग-ए-तिफ़्लाँ की मैं उम्मीद पे हूँ दीवाना
तिसपे देते हैं तग़ाफ़ुल से ये आज़ार मुझे
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
ये दिल है क़तरा-ए-ख़ूँ से भी कम अल्लाह री जुरअत
हुआ है तिसपे रू-कश उस ख़दंग अंदाज़ मिज़्गाँ का
ममनून निज़ामुद्दीन
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नज़्म
फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान
अक़रब ही लगते हैं
तीसरे दर्जे के पीले अख़बारों पर ये
परवीन शाकिर
हास्य
हुस्न यूँ ख़ुश है कि है तीसरे बच्चे का नुज़ूल
इश्क़ यूँ ख़ुश है कि पचमेल हुआ जाता है
माचिस लखनवी
हास्य
'इश्क़ का आज उट्ठा देख जनाज़ा 'वाहिद'
झूटे टिसवे ही सही कुछ तो बहा माई डीयर
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
शेर
ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिसवे बहाए
शम्अ मज्लिस में बड़ी दिल-सोज़ परवाने की है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
क्यूँ न हो बाम पे वो जल्वा-नुमा तीसरे दिन
माह भी छुप के निकलता है दिला तीसरे दिन