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नज़्म
इंसान की फ़रियाद
होती नहीं रसाई उम्मीद के उफ़ुक़ तक
तूल-ए-अमल ने इस को इक जाल में फँसाया
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
तूल-ए-अमल का रस्ता मुमकिन नहीं कि तय हो
मंज़िल पे भी पहुँच कर मंज़िल को ढूँडते हैं
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
सिवा है फ़ित्ना-ए-महशर से भी तूल-ए-'अमल उन का
तिरे गेसू तिरे क़ामत से भी गज़-भर निकलते हैं