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ग़ज़ल
अहमद नदीम क़ासमी
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ग़ज़ल
क़र्या-ए-इंतिज़ार में उम्र गँवा के आए हैं
ख़ाक-ब-सर इस दश्त में ख़ाक उड़ा के आए हैं
अज़ीम हैदर सय्यद
नज़्म
अपने नाम एक नज़्म
और रुत कन्या पाज़ेब उतार के फेंकती है
फिर कोई किसी से ये नहीं कहता
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
ग़ज़ल
ढूँड आया हूँ मैं हर-क़र्या-ओ-हर-शहर 'रफ़ीक़'
कोई वादी न मिली वादी-ए-ऐमन हो कर
जिया लाल दत्त रफ़ीक़
ग़ज़ल
क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ा कर शाम-ओ-सहर दरवेशों ने
कैसे कैसे संग-दिलों को हुस्न-ए-अमल से राम किया
जली अमरोहवी
ग़ज़ल
क़र्या-ब-क़र्या शहर शहर टूट रहा है आज क़हर
चीख़ उठी है रूह-ए-दहर काश कहीं अमाँ मिले