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ग़ज़ल
ख़मोशी दास्ताँ है इस्मत-ए-उन्वान-ए-हस्ती की
ख़मोशी में निहाँ इस्मत के अफ़्साने भी होते हैं
ज़ेब बरैलवी
ग़ज़ल
बहुत मसरूर हैं वो छीन कर दिल का सुकूँ 'उनवाँ'
हुजूम-ए-ग़म में भी मुझ को हँसी आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
उनवान चिश्ती
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ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में फूल नहीं हैं ख़ार बहुत हैं 'हस्ती' जी
प्यार का दुश्मन सारा ज़माना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
नज़्म
इक सवाल ख़ुदा-ए-बरतर से
मोहब्बत, इश्क़, दिलदारी, वफ़ा उनवान-ए-हस्ती हों
उख़ूवत नर्म-गुफ़्तारी अता-ए-पैमाना-ए-दिल हों
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
उजाले की लकीर
वक़्त की गर्द छटेगी तो ब-उनवान-ए-सहर
मंज़िल-ए-शौक़ की राहों का तअ'य्युन होगा
नूर-ए-शमा नूर
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
अब वही नज़रें जो देती थीं शुऊ'र-ए-हस्ती
हम को ना-कर्दा गुनाही की सज़ा देती हैं