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नज़्म
ज़मीन अपने बेटों को पहचानती है
उजड़ती हुई बज़्म के चाँद तारे
कटी गर्दनों गोलियों से छिदे जिस्म की
ऐन ताबिश
ग़ज़ल
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
ज़मीं के हर खिलौने की मगर क़ीमत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
नज़्म
तुझे मुझ से मोहब्बत है
कभी तो 'अहद-ओ-पैमाँ हों
फ़लक के चाँद तारे भी हमारे राज़-दाँ ठहरें
शीराज़ सागर
ग़ज़ल
मैं अक्सर आसमाँ के चाँद तारे तोड़ लाता था
और इक नन्ही सी गुड़िया के लिए ज़ेवर बनाता था