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ग़ज़ल
वा'दे हमदम के रहें क्यूँ न अधूरे ऐ 'वक़ार'
इस में लो ख़ुद ही नज़र आता है दम दो-बटा-चार
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
ग़ज़ल
दीवान-ए-बे-नुक़त से है तेरा 'वक़ार-हिल्म'
कहती है अहल-ए-फ़न से ये गौहर-ब-कफ़ हवा