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नज़्म
अमर जोत
वरक़ तारीख़ ने तेज़ी से उल्टे
तग़य्युर ले के साज़-ओ-बर्ग-ए-ता'मीर-ए-जहाँ आया
ज़किया सुल्ताना नय्यर
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नज़्म
हुस्न-ए-क़ुबूल
तड़प रहा है अभी मुझ में साज़-ओ-बर्ग-ए-नुमू
ये मेरी कलियाँ ये पत्ते अभी तो ज़िंदगी हूँ
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
ग़ज़ल
क्यूँ साज़-ओ-बर्ग-ए-हस्ती करता है तू मुहय्या
दुनिया को है अज़ल से ज़ौक़-ए-फ़ना-परस्ती