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ग़ज़ल
क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है
जो हम ने नारा-ए-तकबीर यल्ग़ारों पे लिक्खा है
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
ग़ज़ल
दिल की गिनती न यगानों में न बेगानों में
लेकिन उस जल्वा-गह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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हिंदी ग़ज़ल
चलो अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा
दुष्यंत कुमार
नज़्म
एक तराना मुजाहिदीन-ए-फ़िलिस्तीन के लिए
बिल-आख़िर इक दिन जीतेंगे
क्या ख़ौफ़ ज़ी-यलग़ार-ए-आदा