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ग़ज़ल
टूटा जो वो तो शाम-ए-शफ़क़-ज़ाद ख़त्म थी
साँसों में फूल खिलने की मीआ'द ख़त्म थी
मुसव्विर सब्ज़वारी
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नज़्म
जुनूँ-ज़ात
हम जुनूँ-ज़ात तिरे हुक्म पे निकले जानाँ
ऐसे निकले हैं कि शायद ही पलट कर आएँ