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नज़्म
इंसान
ज़र्रा-ए-तारीक मेहर-ए-ज़ौ-फ़िशाँ होने को है
क़तरा-ए-नाचीज़ बहर-ए-बेकराँ होने को है
फ़ज़लुर्रहमान
ग़ज़ल
वक़्त हो रहा है फिर ज़ौ-फ़िशाँ हथेली पर
नक़्श हैं मुक़द्दर की सुर्ख़ियाँ हथेली पर
इम्तियाज़ साग़र
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नज़्म
ख़ाक-ए-हिंद
अंजुम से बढ़ के तेरा हर ज़र्रा ज़ौ-फ़िशाँ है
जल्वों से तेरे अब तक हुस्न-ए-अज़ल अयाँ है
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
ज़ौ-फ़िशाँ सीने में सोज़-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ निकला
दिल का हर दाग़ चराग़-ए-तह-ए-दामाँ निकला
अफ़क़र मोहानी
नज़्म
उर्दू
ज़ौ-फ़िशाँ तू रहे ऐ शम्अ'-ए-ज़बान-ए-उर्दू
तेरा हर ज़र्रा चमक कर मह-ए-कामिल हो जाए
सरीर काबिरी
ग़ज़ल
दिल अपना साफ़ है मानिंद-ए-माह-ए-ज़ौ-फ़िशाँ 'फ़ितरत'
'अयाँ हैं सब पे और रखते नहीं हैं कोई राज़ अपना