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नज़्म
स्टेटस मैरिज
था लड़कपन से उसे ज़ौक़-ए-कुतुब-बीनी मगर
ज़िंदा रहती थी किताब-ए-आसमानी के बग़ैर
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
नज़र के साथ ज़ौक़-ए-दूर-बीनी भी तो दे या-रब
फ़क़त इन कोर-चश्मों को नज़र देने से क्या होगा
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी ने दिखलाई 'सहर' अपनी बहार
हुस्न के मा'सूम चेहरे पर निखार आ ही गया
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
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ग़ज़ल
गर फ़रोग़-ए-ज़िंदगी ख़ुद को मिटा देने में है
ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी मिटा कर फ़िक्र-ए-इंसाँ कीजिए
इशरत अनवर
ग़ज़ल
निगाह-ए-चश्म-ए-हासिद वाम ले ऐ ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी
तमाशाई हूँ वहदत-ख़ाना-ए-आईना-ए-दिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
ग़लत था ऐ जुनूँ शायद तिरा अंदाज़ा-ए-सहरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शब ख़ुमार-ए-हुस्न-ए-साक़ी हैरत-ए-मयख़ाना था
आप ही मय आप ही ख़ुम आप ही पैमाना था
एहसान दानिश
ग़ज़ल
सूरत-ए-हाल अब तो वो नक़्श-ए-ख़याली हो गया
जो मक़ाम मा-सिवा था दिल में ख़ाली हो गया