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ग़ज़ल
अजब शय है 'फ़ज़ा' ज़ेहन ओ नज़र की ये असीरी भी
मुसलसल देखते रहना बराबर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नज़्म
किसी की सदा
यूँ फ़ज़ाओं में रवाँ है ये सदा-ए-दिल-नशीं
ज़ेहन-ए-शाइर में हो जैसे इक अछूता सा ख़याल
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
'शान' बे-सम्त न कर दे तुम्हें सहरा-ए-हयात
ज़ेहन में उन के नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा रहने दो
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
गुलज़ार-ए-रिवायत से ज़रा ज़ह्न को मोड़ो
जिद्दत के बयाबान में अश्जार बहुत हैं
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
नज़्म
आवाज़-ए-आदम
ये ज़ोम-ए-क़ुव्वत-ए-फ़ौलाद-ओ-आहन देख लो तुम भी
ब-फ़ैज़-ए-जज़्बा-ए-ईमान-ए-मोहकम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जिन की फ़ितरत ना-शनास-ए-ज़ौक़-ए-मोहकम है 'उरूज'
मैं उन्हें ये कैसे समझाऊँ वफ़ा क्या चीज़ है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
मता-ए-अज़्म-ए-मोहकम ही का इस को मो'जिज़ा कहिए
कि मंज़िल बन गई ख़ुद रहगुज़र आहिस्ता आहिस्ता
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
रोज़-ओ-शब अपने गुज़र जाना दयार-ए-ग़ैर में
दास्तान-ए-अज़्म-ए-मोहकम के सिवा कुछ भी नहीं