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ग़ज़ल
बे-मेहरी-ए-अर्बाब-ए-वतन कम तो नहीं है
हाँ देखना इस दिल की चुभन कम तो नहीं है
सय्यद शफ़क़ शाह चिश्ती
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ग़ज़ल
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
इब्न-ए-इंशा
शेर
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द
ली जहाँ करवट किसी ने इंक़लाब आ ही गया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
'अबस है पेश-ए-अर्बाब-ए-सुख़न अज़्म-ए-सुख़न मुझ को
वफ़ा कहने न देगी क़िस्सा-ए-रंज-ओ-मेहन मुझ को
अब्बास अली ख़ान बेखुद
नज़्म
फ़िक्र
हुस्न की जल्वा-गह-ए-नाज़ का अफ़्सूँ तस्लीम
यही क़ुर्बां--गह-ए-अरबाब-ए-नज़र क्यूँ हो जाए