aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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Nukkad Printing Press, Lucknow
Publisher
ballii-maaraa.n ke mohalle kii vo pechiida daliilo.n kii sii galiyaa.nsaamne Taal kii nukka.D pe baTero.n ke qasiide
सौगंधी ने बाम की शीशी तिपाई पर रख दी और कहा, “बचाई होती तो ये मुवा सर में दर्द ही क्यों होता... देख रामलाल! वो जो बाहर मोटर में बैठा है उसे अंदर ही ले आओ।” रामलाल ने जवाब दिय, “नहीं भई, वो अंदर नहीं आ सकते। जैंटलमैन आदमी हैं।...
और वो तेज़ तेज़ चलने लगी... त्रिलोचन ने भी क़दम तेज़ कर दिए। ये गली तय कर के दोनों उस मोहल्ले में पहुंच गए जहां कृपाल कौर रहती थी। मोज़ील ने पूछा, “किस गली में जाना है?” त्रिलोचन ने आहिस्ते से कहा, “तीसरी गली में... नुक्कड़ वाली बिल्डिंग!”...
गोया पड़ोसी सिब्ते की भैंस फिर मदन के मुँह के पास फुंकारने लगी। बल्कि बार-बार फुंकारने लगी। शादी की रात वाली भैंस तो बिक चुकी थी लेकिन उसका मालिक ज़िंदा था। मदन उसके साथ ऐसी जगहों पर जाने लगा जहाँ रौशनी और साये अजीब बे-क़ाएदा सी शक्लें बनाते हैं। नुक्कड़...
अख़लाक़ ने कुछ न सोचा, फ़ौरन उसको लिखा मेरी बाहें तुम्हें अपने आग़ोश में लेने के लिए तड़प रही हैं। मैं तुम्हारी इज़्ज़त-ओ-इस्मत पर कोई हर्फ़ नहीं आने दूंगा। तुम मेरी रफ़ीक़ा-ए-हयात बन के रहोगी। ज़िंदगी भर मैं तुम्हें ख़ुश रखूंगा। एक दो ख़त और लिखे गए इस के बाद...
नुक्कड़نکڑ
street corner
saamne ke nukka.D parnal dikhaa.ii detaa hai
मुझे मेरे तख़य्युल की परवाज़ से कौन रोक सकता था। कहीं मेरे तख़य्युल के क़िले ज़मीन पर न आ रहें। इसी डर से तो मैंने शम्मी को बाज़ार भेजा था। मैं सोच रहा था। शम्मी अब घोड़े हस्पताल के क़रीब पहुँच चुकी होगी... अब कॉलेज रोड की नुक्कड़ पर होगी......
वो उसे संगीन चबूतरे पर हस्ब-ए-मामूल बैठने से पहले खेतवाड़ी की पांचवीं गली में गया था। बैंगलौर से जो नई छोकरी कान्ता आई थी, उसी गली के नुक्कड़ पर रहती थी। ख़ुशिया से किसी ने कहा था कि वो अपना मकान तबदील कर रही है चुनांचे वो इसी बात का...
वो गली के उस नुक्कड़ पर छोटी छोटी लड़कियों के साथ खेल रही थी और उसकी माँ उसे चाली (बड़े मकान जिसमें कई मंज़िलें और कई छोटे छोटे कमरे होते हैं) में ढूंढ रही थी। किशोरी को अपनी खोली में बिठा कर और बाहर वाले से काफ़ी चाय लाने के...
"वो जो बड़ा सा घर है न अगली गली में नुक्कड़ वाला..." "फ़ारूक़ साहिब का?"...
हम कोई आध घंटे तक बाज़ार के नुक्कड़ पर खड़े ये तमाशा देखते रहे। उसके बाद एक दम हमें सख़्त भूक लगने लगी और हम वहाँ से अपने-अपने घरों को चले आए। अगले रोज़ इतवार की छुट्टी थी। मैंने सोचा था कि सुबह आठ नौ बजे तक सो कर कल...
और सामने रूप चंद अपने बरामदे में ज़ोर-ज़ोर से टहल रहे थे गालियाँ दे रहे थे। अपने बीवी-बच्चों को, नौकरों को। सरकार को और सामने फैली हुई बे-ज़बान सड़क को, ईंट-पत्थर को और चाक़ू-छुरी को। हत्ता कि पूरी कायनात उनकी गालियों की बमबारी के आगे सहमी दुबकी बैठी थी। और...
मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर के उस नुक्कड़ वाले मकान तक पहुंचने...
मैंने जब ग़ौर से उनकी आँखों में देखा तो एक पल के लिए मुझे उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक नज़र आई। फिर मुझे महसूस हुआ, जैसे दरिया का पाट बहुत चौड़ा हो गया हो। कलकत्ता से एम.बी.बी.एस. करने के बाद मैंने वहीं एक बंगाली लड़की से शादी कर...
vo ik nukka.D hai nafrat kaakab tak is nukka.D par Thahre.n
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