aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पढ़ाई"
वो चेहरा किताबी रहा सामनेबड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई
मैं ने कहा कि देख ये मैं ये हवा ये रातउस ने कहा कि मेरी पढ़ाई का वक़्त है
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ केमिलता है जिस से यार न ऐसी पढ़ाई बात
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों नेलम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत कीमरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पायादर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाईदिल की दिल में ही रही बात न होने पाई
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताबपढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
ज़िंदगी कम पढ़े परदेसी का ख़त है 'इबरत'ये किसी तरह पढ़ा जाए न समझा जाए
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहींदिल ने हर चीज़ पराई दी है
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैंमैं ने चेहरे पे तिरे यूँ तो लिखा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी हैजाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं
ग़ौर से देखते रहने की सज़ा पाई हैतेरी तस्वीर इन आँखों में उतर आई है
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिनज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ
वो चीज़ कहते हैं फ़िरदौस-ए-गुमशुदा जिस कोकभी कभी तिरी आँखों में पाई जाती है
मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहायही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
अच्छी पी ली ख़राब पी लीजैसी पाई शराब पी ली
सबक़ ऐसा पढ़ा दिया तू नेदिल से सब कुछ भुला दिया तू ने
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातेंपाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिदयहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है
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