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शेर
ये हसरत रह गई क्या क्या मज़े से ज़िंदगी करते
अगर होता चमन अपना गुल अपना बाग़बाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
यही बहुत है किसी तरह से भरम ही रह जाए पेश दुनिया
अगर मयस्सर नहीं है बादा ख़याल-ए-बादा भी कम नहीं है
ख़ालिद इक़बाल यासिर
शेर
अज़ीज़ान-ए-वतन को ग़ुंचा ओ बर्ग ओ समर जाना
ख़ुदा को बाग़बाँ और क़ौम को हम ने शजर जाना
चकबस्त बृज नारायण
शेर
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
जाऊँ सहरा को तो दम गर्द-ए-बयाबाँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दिल-ए-मुज़्तर वफ़ा के बाब में ये जल्द-बाज़ी क्या
ज़रा रुक जाएँ और देखें नतीजा क्या निकलता है
आफ़ताब हुसैन
शेर
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को
रग-ए-जाँ को मिरी निस्बत है रग-ए-ताक के साथ