आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "sahar"
शेर के संबंधित परिणाम "sahar"
शेर
शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
हम उन के सितम को भी करम जान रहे हैं
और वो हैं कि इस पर भी बुरा मान रहे हैं
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
शेर
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बाद सहर न हो