aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'adiib'"
जहाँ पहुँच के क़दम डगमगाए हैं सब केउसी मक़ाम से अब अपना रास्ता होगा
सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैंहर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं
अमीर-ए-कारवाँ है तंग हम सेहमारा रास्ता सब से अलग है
हम ने घर की सलामती के लिएख़ुद को घर से निकाल रक्खा है
जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहेवो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं
तू अपनी मर्ज़ी के सभी किरदार आज़मा लेमिरे बग़ैर अब तिरी कहानी नहीं चलेगी
मैं अकेला हूँ तू भी तन्हा हैहम भी कितने हैं बे-सहारे देख
ज़माना मुझ से जुदा हो गया ज़माना हुआरहा है अब तो बिछड़ने को मुझ से तू बाक़ी
धीमा धीमा दर्द सुहाना हम को अच्छा लगता थादुखते जी को और दुखाना हम को अच्छा लगता था
निकल आया हूँ आगे उस जगह सेजहाँ से लौट जाना चाहिए था
हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हमचले हैं उठ के तो अक्सर गए उसी की तरफ़
मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने सेशौक़ को तअल्लुक़ ही कब है पाँव थकने से
हम उन की आस पे उम्रें गुज़ार देते हैंवो मो'जिज़े जो कभी रूनुमा नहीं होते
शहर-ए-सुख़न अजीब हो गया हैनाक़िद यहाँ अदीब हो गया है
हम से 'आबिद' अपने रहबर को शिकायत ये रहीआँख मूँदे उन के पीछे चलने वाले हम नहीं
लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता हैअब तो ज़हर अल्फ़ाज़ में रक्खा जाता है
ज़रा सी देर तुझे आइना दिखाया हैज़रा सी बात पर इतने ख़फ़ा नहीं होते
शो-केस में रक्खा हुआ औरत का जो बुत हैगूँगा ही सही फिर भी दिल-आवेज़ बहुत है
रोने को तो रो लेते हैं हम ख़ून के आँसूशबनम सा हमें अश्क बहाना नहीं आता
उसी ने सब से पहले हार मानीवही सब से दिलावर लग रहा था
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