aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'marhab'"
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगाआसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भीवो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आतीमगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठेंदिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगीवो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीदमगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
तेरे आने की क्या उमीद मगरकैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखाउस को छुट्टी न मिले जिस को सबक़ याद रहे
कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती हैरोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता हैमगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगामगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगरसर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भीइंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
हर एक रात को महताब देखने के लिएमैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
दिल से जो बात निकलती है असर रखती हैपर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस नेबात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करोबावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया हैमगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
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