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शेर
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
तंग आ गए हैं गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से हम
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
चाहे दीवाना कहें या लोग सौदाई कहें
आ गए हम सर को ले कर पत्थरों के शहर में
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
पंडित विद्या रतन आसी
शेर
पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू
ठहर गया तो इक क़तरा सा बह निकला तो दरिया आँसू
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
लौह-ए-दिल पे जिस के निशान हैं वही एक नाम क़ुबूल है
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा
शेर
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं