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शेर
ये कैसा हादसा गुज़रा ये कैसा सानेहा बीता
न आँगन है न छत बाक़ी न हैं दीवार-ओ-दर बाक़ी
सज्जाद शम्सी
शेर
जिन से मंसूब मिरे दिल की हर इक धड़कन हो
वो न समझें मिरे जज़्बात तो दुख होता है