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शेर
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
शेर
दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
जावेद अख़्तर
शेर
न जाने क्यूँ हमारे दिल को तुम ने दिल नहीं समझा
ये शीशा तोड़ डाला प्यार के क़ाबिल नहीं समझा
एस. एच. बिहारी
शेर
नालाँ हूँ अपने ज़ौक़-ए-नज़र से 'हबीब' क्यों
क्या सह रहे हैं क़ल्ब-ओ-जिगर कुछ न पूछिए