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शेर
मैं किन आँखों से ये देखूँ कि साया साथ हो तेरे
मुझे चलने दे आगे या टुक उस को पेशतर ले जा
क़ाएम चाँदपुरी
शेर
दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ
नहीं ताक़त अँखियों के खोलने की अब तलक हम कूँ
आबरू शाह मुबारक
शेर
सुख़न-साज़ी में लाज़िम है कमाल-ए-इल्म-ओ-फ़न होना
महज़ तुक-बंदियों से कोई शाएर हो नहीं सकता
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
नज़ीर अकबराबादी
शेर
तुझ को छुआ तो देर तक ख़ुद को ही ढूँडता रहा
इतनी सी देर में भला तुझ से कहाँ मिला हूँ मैं