aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अभी से पाँव के छाले न देखोअभी यारो सफ़र की इब्तिदा है
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिएज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थीमजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये थामुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था
न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहाँमिले तो उस को हमारा कोई सलाम कहे
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारोहम लोग मोहब्बत की कहानी में मरें हैं
रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँवचलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो
बहारों की नज़र में फूल और काँटे बराबर हैंमोहब्बत क्या करेंगे दोस्त दुश्मन देखने वाले
करे है अदावत भी वो इस अदा सेलगे है कि जैसे मोहब्बत करे है
जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग करकल रात मैं रोया तिरी दीवार से लग कर
तुम्हें याद ही न आऊँ ये है और बात वर्नामैं नहीं हूँ दूर इतना कि सलाम तक न पहुँचे
मैं उस के ऐब उस को बताता भी किस तरहवो शख़्स आज तक मुझे तन्हा नहीं मिला
ये आँसू बे-सबब जारी नहीं हैमुझे रोने की बीमारी नहीं है
गुज़र जाएँगे जब दिन गुज़रे आलम याद आएँगेहमें तुम याद आओगे तुम्हें हम याद आएँगे
ग़म है तो कोई लुत्फ़ नहीं बिस्तर-ए-गुल परजी ख़ुश है तो काँटों पे भी आराम बहुत है
क्या सितम है कि वो ज़ालिम भी है महबूब भी हैयाद करते न बने और भुलाए न बने
जिस की अदा अदा पे हो इंसानियत को नाज़मिल जाए काश ऐसा बशर ढूँडते हैं हम
बात चाहे बे-सलीक़ा हो 'कलीम'बात कहने का सलीक़ा चाहिए
सुनेगा कौन मेरी चाक-दामानी का अफ़्सानायहाँ सब अपने अपने पैरहन की बात करते हैं
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