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शेर
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
ग़ैज़ में आने को तुम हो मुझ को प्यार आने को है
आग़ा हज्जू शरफ़
शेर
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बगूले सा तो कर ले तौफ़ दिल पहलू में मक्का है
वली उज़लत
शेर
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
मँगा कर रख दिया इक शीशा चकनाचूर पहलू में
आग़ा हज्जू शरफ़
शेर
क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो आ ही न सकें
हम ये कहते हैं कि आ जाएँ तो जा ही न सकें
आग़ा हज्जू शरफ़
शेर
नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
ख़ुशी के ख़्वाब भी देखें तो बे-ताबीर होते हैं