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शेर
हर पत्ती बोझल हो के गिरी सब शाख़ें झुक कर टूट गईं
उस बारिश ही से फ़स्ल उजड़ी जिस बारिश से तय्यार हुई
महशर बदायुनी
शेर
ले उड़ी तुझ को निगाह-ए-शौक़ क्या जाने कहाँ
तेरी सूरत पर भी अब तेरा गुमाँ होता नहीं