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शेर
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल
सफ़र में भी तो सदियों की मसाफ़त चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
शेर
मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा
तो कह दूँगा कि अपनी मुश्किलें आसान करता हूँ