aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "آفتاب"
निगाह बर्क़ नहीं चेहरा आफ़्ताब नहींवो आदमी है मगर देखने की ताब नहीं
वो यूँ मिला था कि जैसे कभी न बिछड़ेगावो यूँ गया कि कभी लौट कर नहीं आया
गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिस में तू न हो
वो चाँदनी में फिरते हैं घर घर ये शोर हैनिकला है आफ़्ताब शब-ए-माहताब में
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरतइक आफ़्ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्तानिकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
ज़र्रा समझ के यूँ न मिला मुझ को ख़ाक मेंऐ आसमान मैं भी कभी आफ़्ताब था
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ सेपरतव से आफ़्ताब के ज़र्रे में जान है
कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिएमैं अपनी ज़िंदगी आसान करने वाला हूँ
लोग किस किस तरह से ज़िंदा हैंहमें मरने का भी सलीक़ा नहीं
इश्क़ में ये मजबूरी तो हो जाती हैदुनिया ग़ैर-ज़रूरी तो हो जाती है
हाल हमारा पूछने वालेक्या बतलाएँ सब अच्छा है
लाख आफ़्ताब पास से हो कर गुज़र गएहम बैठे इंतिज़ार-ए-सहर देखते रहे
अभी दिलों की तनाबों में सख़्तियाँ हैं बहुतअभी हमारी दुआ में असर नहीं आया
हमारा दौर अंधेरों का दौर है लेकिनहमारे दौर की मुट्ठी में आफ़्ताब भी है
मोम की सीढ़ी पे चढ़ कर छू रहे थे आफ़्ताबफूल से चेहरों को ये कोशिश बहुत महँगी पड़ी
बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देखनज़र उठा कि ये दुनिया है देखने के लिए
पीरी में वलवले वो कहाँ हैं शबाब केइक धूप थी कि साथ गई आफ़्ताब के
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भीचलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
तिरे उफ़ुक़ पे सदा सुब्ह जगमगाती रहेजहाँ पे मैं हूँ वहाँ शाम होने वाली है
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