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शेर
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ
अकबर इलाहाबादी
शेर
इक इंतिज़ार में क़ाएम है इस चराग़ की लौ
इक एहतिमाम में कमरे का दर खुला हुआ है