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शेर
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
शेर
दिल के अज्ज़ा में नहीं मिलता कोई जुज़्व-ए-निशात
इस सहीफ़े से किसी ने इक वरक़ कम कर दिया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
बहार आई है और मेरी निगाहें काँप उट्ठीं हैं
यही तेवर थे मौसम के जब उजड़ा था चमन अपना
जगन्नाथ आज़ाद
शेर
सहज याद आ गया वो लाल होली-बाज़ जूँ दिल में
गुलाली हो गया तन पर मिरे ख़िर्क़ा जो उजला था
वली उज़लत
शेर
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
सो रहता है ब-अंदाज़-ए-चकीदन सर-निगूँ वो भी
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
क्या आई थीं हूरें तिरे घर रात को मेहमाँ
कल ख़्वाब में उजड़ा हुआ फ़िरदौस-ए-बरीं था
अहमद हुसैन माइल
शेर
पैराहन बाक़ी है मेरे जिस्म पे अब भी उजला सा
शायद इश्क़ मुकम्मल नाज़िल होना अब भी बाक़ी है