aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "احد"
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवाराहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाबआज तुम याद बे-हिसाब आए
जब वफ़ा ही नहीं ज़माने मेंइश्क़ सर पर सवार कौन करे
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंजिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
कभी मंदिर कभी मस्जिद पे है इस का बसेराधरम इंसानियत का बस कबूतर जानता है
देर तक साथ भीगे हम उस केहम ने यूँ कामयाब की बारिश
और क्या देखने को बाक़ी हैआप से दिल लगा के देख लिया
यूँ तो सफ़र किया है कितने ही रास्तों परलेकिन तिरे ही घर का रस्ता पसंद आया
बरहमन कहता था बरहम शैख़ बोल उठा अहदहर्फ़ के इक फेर से दोनों में झगड़ा हो गया
कभी मिलोगे ये सोच कर दिलहज़ार सपने बुना करेगा
कम मा'रका-ए-ज़ीस्त नहीं जंग-ए-उहद सेअस्बाब-ए-जहाँ माल-ए-ग़नीमत की तरह है
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूमकि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हमतू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िलकोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैंकिसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सहीनहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
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