aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "اصلا"
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनामवो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहदअक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देनाहसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम परहँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
सुब्ह होती है शाम होती हैउम्र यूँही तमाम होती है
वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाएऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता
आई होगी किसी को हिज्र में मौतमुझ को तो नींद भी नहीं आती
रहता है इबादत में हमें मौत का खटकाहम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहींसामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एककुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगाजाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा
ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी हैउसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज सेलेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब कोमर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं
ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँकाश तुझ को भी इक झलक देखूँ
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली हैडाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैंकि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
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