aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "افترا"
बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिएदरून-ए-किज़्ब-ओ-इफ़्तिरा सदाक़तें ख़लत-मलत
इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ कोमैं एक दरिया के पार उतरा तो मैं ने देखा
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआआँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ
ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिएतो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए
तमाम जिस्म की उर्यानियाँ थीं आँखों मेंवो मेरी रूह में उतरा हिजाब पहने हुए
कचरे से उठाई जो किसी तिफ़्ल ने रोटीफिर हल्क़ से मेरे कोई लुक़्मा नहीं उतरा
बहुत क़दीम नहीं कल का वाक़िआ है येमैं इस ज़मीन पे उतरा था तेरी ज़ात के साथ
मोहब्बत आप ही मंज़िल है अपनीन जाने हुस्न क्यूँ इतरा रहा है
मैं दुनिया के मेआ'र पे पूरा नहीं उतरादुनिया मिरे मेआ'र पे पूरी नहीं उतरी
दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतराउफ़ुक़-ए-दर्द से सीने में उजाला उतरा
किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्मकौन उतरा है तिरे क़ल्ब की गहराई में
रात आँगन में चाँद उतरा थातुम मिले थे कि ख़्वाब देखा था
आसमाँ झाँक रहा है 'ख़ालिद'चाँद कमरे में मिरे उतरा है
ये जो दुनिया है इसे इतनी इजाज़त कब हैहम पे अपनी ही किसी बात का ग़ुस्सा उतरा
सब अपने अपने दियों के असीर पाए गएमैं चाँद बन के कई आँगनों में उतरा हूँ
बड़ी उम्र के बा'द इन आँखों में कोई अब्र उतरा तिरी यादों कामिरे दिल की ज़मीं आबाद हुई मिरे ग़म का नगर शादाब हुआ
अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानीइक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता
उतरा था जिस पे बाब-ए-हया का वरक़ वरक़बिस्तर के एक एक शिकन की शरीक थी
आसाँ तो नहीं अपनी हस्ती से गुज़र जानाउतरा जो समुंदर में दरिया तो बहुत रोया
मैं तेरी रूह में उतरा हुआ मिलूँगा तुझेऔर इस तरह कि तुझे कुछ ख़बर नहीं होनी
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