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शेर
सख़्ती-अय्याम दौड़े आती है पत्थर लिए
क्या मिरा नख़्ल-ए-तमन्ना बारवर होने लगा
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शेर
लुटाते हैं वो दौलत हुस्न की बावर नहीं आता
हमें तो एक बोसा भी बड़ी मुश्किल से मिलता है