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शेर
उसी दुनिया के कुछ नक़्श-ओ-निगार अशआ'र हैं मेरे
जो पैदा हो रही है हक़्क़-ओ-बातिल के तसादुम से
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले
तो तुम से कहें हम हक़ ओ बातिल की हक़ीक़त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
दिल-ए-महज़ूँ बहल सकता नहीं इस नक़्श-ए-बातिल से
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
नासिर काज़मी
शेर
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई