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शेर
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
मीर तक़ी मीर
शेर
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर