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शेर
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
सय्यद ज़मीर जाफ़री
शेर
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीख़ती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिन को मैं अक्सर याद करता था
मुनव्वर राना
शेर
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
मैं अपनी बान छोड़ूँ न तू अपनी आन छोड़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
पहले हम को बहन कहा अब फ़िक्र हमीं से शादी की
ये भी न सोचा बहन से शादी कर के क्या कहलाएँगे
राजा मेहदी अली ख़ाँ
शेर
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं