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शेर
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
अल्लामा इक़बाल
शेर
इब्न-ए-इंशा
शेर
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते
क्यूँ बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते