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शेर
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
अल्लामा इक़बाल
शेर
क्या तुझे इल्म नहीं तेरी रज़ा की ख़ातिर
मैं ने किस किस को ज़माने में ख़फ़ा रक्खा है
अख़लाक़ बन्दवी
शेर
अगर तेरी ख़ुशी है तेरे बंदों की मसर्रत में
तो ऐ मेरे ख़ुदा तेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता
हरी चंद अख़्तर
शेर
दैर ओ काबा में भटकते फिर रहे हैं रात दिन
ढूँढने से भी तो बंदों को ख़ुदा मिलता नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
मुझे काफ़िर ही बताता है ये वाइज़ कम-बख़्त
मैं ने बंदों में कई बार ख़ुदा को देखा
मिर्ज़ा मायल देहलवी
शेर
निगह-ए-लुत्फ़ में है उक़्दा-कुशाई मुज़्मर
काम बिगड़े हुए बंदों के सँवर जाते हैं