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शेर
जो चुप रहा तो वो समझेगा बद-गुमान मुझे
बुरा भला ही सही कुछ तो बोल आऊँ मैं
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
शेर
दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है
यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं
अंदलीब शादानी
शेर
दोस्तों का क्या है वो तो यूँ भी मिल जाते हैं मुफ़्त
रोज़ इक सच बोल कर दुश्मन कमाने चाहिएँ